ख़ुदा ने किस शहर अंदर हमन को लाए डाला है न दिलबर है न साक़ी है न शीशा है न प्याला है पिया के नाँव की सिमरन किया चाहूँ करूँ किस सीं न तस्बीह है न सिमरन है न कंठी है न माला है ख़ुबाँ के बाग़ में रौनक़ हुए तो किस तरह याराँ न दोना है न मरवा है न सौसन है न लाला है पियाँ के नाँव आशिक़ कूँ क़त्ल अजब देखे न बर्छी है न कर्छी है न ख़ंजर है न भाला है 'बरहमन' वास्ते अश्नान के फिरता है बगियाँ सीं न गंगा है न जमुना है न नद्दी है न नाला है