अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई लाला-कारी किसी सूरत भी हमारी न गई कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई उन की मस्ताना निगाहों का नहीं कोई क़ुसूर नासेहो ज़िंदगी ख़ुद हम से सँवारी न गई चश्म-ए-महज़ूँ पे न लहराई वो ज़ुल्फ़-ए-शादाब ये परी हम से भी शीशे में उतारी न गई मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई शाद ओ ख़ंदाँ रहे हम यूँ तो जहाँ में लेकिन अपनी फ़ितरत से कभी दर्द-शिआरी न गई सैकड़ों बार मिरे सामने की तौबा मगर तौबा 'अख़्तर' कि तिरी बादा-गुसारी न गई