हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख अपनी मुश्किल किसी आसान से बाँधे हुए रख तुझ को मालूम से आगे कहीं जाना है तो फिर ख़्वाब को दीदा-ए-हैरान से बाँधे हुए रख वर्ना मुश्किल बड़ी होगी यहाँ दुनिया-दारी देख इंसान को इंसान से बाँधे हुए रख जो भुलाने पे कभी भूल नहीं पाता है मुझ को अपने उसी एहसान से बाँधे हुए रख