अश्क-ए-ग़म आँखों ने बरसाया बहुत जाने क्यूँ उन का ख़याल आया बहुत उस को दीं हम ने दुआएँ बार-हा ज़िंदगी में जिस ने तड़पाया बहुत जिस को अपना दिल समझते थे उसे अपना कम और आप का पाया बहुत बन के राज़-ए-ज़िंदगी दिल में रहे ज़िंदगी में फिर भी तरसाया बहुत दौलत ओ हशमत पे नाज़ाँ हो कोई है हमें तो दिल का सरमाया बहुत धूप की सख़्ती तो थी लेकिन 'फ़राज़' ज़िंदगी में फिर भी था साया बहुत