तमाम जिस्म अगर ला-उबाल है तो रहे वही जो दश्त में तन्हा ग़ज़ाल है तो रहे फ़क़ीर भूल चुका है निसाब दुनिया का तिरे नसीब में माल-ओ-मनाल है तो रहे अज़ीज़ रखती है मुझ को वतन की ख़ाक बहुत तिरे ख़ुलूस में रंज-ओ-मलाल है तो रहे किया है जंग को रुख़्सत मगर दुआ दे कर अदू के पास अगर उस की ढाल है तो रहे तलाश करने को निकले बहुत से लोग तुझे निशान क़दमों का मिलना मुहाल है तो रहे हिसार बाँध रही है 'निसार' सरशारी ख़िलाफ़ आज जुनूब-ओ-शुमाल है तो रहे