अश्कों की घनघोर घटा है नैन समुंदर काँप रहा है घोर अंधेरा है तो क्या है रात का सूरज चमक रहा है कश्ती कोई डूब न जाए शोख़ समुंदर उमड रहा है ज़ुल्म की दुनिया ज़र्द-आलूदा सब्र की दुनिया सब्ज़-नुमा है जंगल-जंगल रौशन-रौशन अपना दिल क्यों बुझा बुझा है दिल का चेहरा रौशन-रौशन लगता है महताब हुआ है दाग़-ए-फ़ुर्क़त और फ़रोज़ाँ जब भी चराग़-ए-याद जला है कर्ब की ख़ुशबू और बढ़ेगी दिल में अब ये फूल खिला है दुनिया के ग़म भूल गया हूँ तेरा तसव्वुर होश-रुबा है 'अख़्तर' जी की सुख़नवरी में रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल बोल रहा है