आँखों से अपनी 'आसिफ़' तू एहतिराज़ करना ये ख़ू बुरी है इन का इफ़शा-ए-राज़ करना जाते तो हो पियारे उक्ता के मुझ कने से पर वास्ते ख़ुदा के फिर सरफ़राज़ करना दो-चार दिन में ज़ालिम होवेगी ख़त की शिद्दत ये हुस्न आरज़ी है इस पर न नाज़ करना फिरते हो तुम हर इक जा हम भी तो आश्ना हैं याँ भी करम कभी ऐ बंदा-नवाज़ करना दिल तो बहुत लिए हैं तुम ने हर एक जा से इस मेरे दिल का साहब कुछ इम्तियाज़ करना