असीरान-ए-इश्क़-ए-बुताँ और भी हैं नहीं मैं ही महव-ए-फ़ुग़ाँ और भी हैं अभी ये जफ़ा का है आग़ाज़ ऐ दिल वफ़ा के अभी इम्तिहाँ और भी हैं नहीं इक फ़लक की है मुझ पर इनायत मिरे हाल पर मेहरबाँ और भी हैं हमीं से है क्यूँ लाग बर्क़-ए-तपाँ को चमन में कई आशियाँ और भी हैं रह-ए-इश्क़ में मिट गए हम तो क्या ग़म रह-ए-इश्क़ में कारवाँ और भी हैं कहा जब से है हाल-ए-दिल उन से अपना वो मुझ से हुए बद-गुमाँ और भी हैं वतन की तरक़्क़ी पे ख़ुश हो न 'आफ़त' अभी बेकस-ओ-बे-मकाँ और भी हैं