किस दिल से हम इरादा-ए-तर्क-ए-जुनूँ करें मुमकिन नहीं कि ख़्वाहिश-ए-सहरा का ख़ूँ करें कुछ गुफ़्तुगू हो आज उरूस-ए-बहार से कुछ हम ख़िज़ाँ-रसीदा भी हासिल सकूँ करें हाँ बे-कनारियों से करें आश्ना उसे हाँ दर्द-ए-इंतिज़ार को कुछ तो फ़ुज़ूँ करें मंज़िल का जिस से मिल न सके ता-अबद सुराग़ वो राह इख़्तियार बताओ तो क्यूँ करें दें आरज़ू को रंग-ए-रह-ए-यार-ए-ख़ुश-ख़िराम फ़ुर्सत मिले तो 'आसिफ़'-ओ-'ख़ालिद' भी यूँ करें