असीर-ए-बहर-ओ-बर कोई नहीं है जहाँ में मुख़्तसर कोई नहीं है है धड़का सा मिरे सीने में लेकिन दर-ए-उम्मीद पर कोई नहीं है मिरा साया सिमट आया है मुझ में मिरा अब हम-सफ़र कोई नहीं है हवादिस भी वहीं हम भी वहीं हैं मगर अब चश्म-ए-तर कोई नहीं है नज़र ही बाम पर मेरी नहीं या नज़र के बाम पर कोई नहीं है ब-जुज़ मेरे यहाँ मेरी वफ़ा का हवाला मो'तबर कोई नहीं है समझ कर सोच कर दिल में उतरना यहाँ बाहर को दर कोई नहीं है ख़िरद के लाख क़ासिद हैं तो होंगे जुनूँ का नामा-बर कोई नहीं है मुझे अपनाने वाले लोग 'ताहिर' बहुत से हैं मगर कोई नहीं है