बिला जवाज़ नहीं है ग़ुरूर आँखों में बसा हुआ है कोई तो ज़रूर आँखों में तसल्लियों का चराग़ाँ शफ़ीक़ होंटों पर मोहब्बतों की अनोखी सुतूर आँखों में वज़ू-ए-दीद जुदाई में भी मयस्सर है हैं गरचे दूर मगर हैं हुज़ूर आँखों में कि रात दूधिया चादर में ख़्वाब लिपटे थे तमाम दिन था रहा उस का नूर आँखों में रुके हुए किसी सैलाब की सफ़ारत को किया है अश्क ने फिर से ज़ुहूर आँखों में जिया है दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ हद-ए-मुअ'य्यन में किया है आँख का दरिया उबूर आँखों में ख़ुमार-ए-दर्द में 'ताहिर-अदीम' सब मसरूर हैं मस्तियाँ सी सरों में सुरूर आँखों में