असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ मुकालमे के लिए अस्र की ज़बान में आओ पए सबात-ए-तग़य्युर पुकारते हुए गुज़रे छतें शिकस्ता हैं निकलो नए मकान में आओ ज़मीं का वक़्त से झगड़ा है ख़ुद निपटते रहेंगे कहा है किस ने कि तुम उन के दरमियान में आओ ये आठ पहर की दुनिया तुम्हें बताऊँ कि क्या है निकल के जिस्म से कुछ देर अपनी जान में आओ तुम्हें तुम्हारी अलिफ़ दीद में मैं देखना चाहूँ नज़र बचा के ज़माने से मेरे ध्यान में आओ