अता कर मुझ को नज़ारे की ताब आहिस्ता-आहिस्ता उठा रू-ए-मुनव्वर से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता करम की आरज़ू क्या जब करम हो जौर-ए-पैहम का गवारा होता जाता है इताब आहिस्ता-आहिस्ता वो छुप-छुप कर मुलाक़ातें वो हुस्न-ओ-इश्क़ की बातें सवाल आहिस्ता-आहिस्ता जवाब आहिस्ता-आहिस्ता तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल रफ़्ता-रफ़्ता हो गई माइल हुआ जज़्ब-ए-मोहब्बत कामयाब आहिस्ता-आहिस्ता सर-ए-महशर न बन आया 'मुबारक' जब जवाब उन से उठी मेरी तरफ़ चश्म-ए-पुर-आब आहिस्ता-आहिस्ता