दामन लहू-लहू है गरेबाँ लहू-लहू हैं कुश्तगान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ लहू-लहू शायद गुज़र चुकी है असीरों की जान पर ज़ंजीर है ख़मोश तो ज़िंदाँ लहू-लहू गो हो चुका वजूद पतंगों का बे-निशाँ है दामन-ए-चराग़-ए-शबिस्ताँ लहू-लहू किस कारवान-ए-आबला-पा का गुज़र हुआ है दश्त ख़ून-ख़ून बयाबाँ लहू-लहू ख़ंजर-फ़शाँ है किस की ख़ुदाई चहार सम्त हर गाम पर है अज़्मत-ए-इंसाँ लहू-लहू आँचल है सुर्ख़ ख़ूँ से उरूस-ए-बहार का गुलचीं के जौर से है गुलिस्ताँ लहू-लहू जौलाँ फ़क़त रगों में 'मुबारक' लहू नहीं है क़ल्ब-ता-ब-दीदा-ए-गिर्यां लहू-लहू