अता-ए-दर्द की तर्सील ना-मुकम्मल है हमारी ज़ात की तश्कील ना-मुकम्मल है हमारे रोग में है बंद कारोबार-ए-जहाँ हमारे शहर में तातील ना-मुकम्मल है मिटा नहीं है अंधेरा ग़मों का दुनिया से नशात-ए-रूह की क़िंदील ना-मुकम्मल है ऐ आसमान तिरा ज़ुल्म मुख़्तसर ठहरा हमारे ज़ब्त की तफ़्सील ना-मुकम्मल है नहीं है ग़ौर-तलब अर्ज़-ए-मुद्दआ जब तक तुम्हारे हुक्म की तामील ना-मुकम्मल है निसार उस पे 'रज़ा' जब तलक न हो पाएँ हमारे अज़्म की तकमील ना-मुकम्मल है