बुझे अगर बदन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में जला लिए सुख़न के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में चमन ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ हो जब बुझा बुझा हुआ हो दिल करें भी क्या चमन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में शब-ए-फ़िराक़ पर हुआ शब-ए-विसाल का गुमाँ महक उठे मिलन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में उदासियों के हब्स में जो तेरी याद आ गई तो जल उठे पवन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में सो क्यों न दिल के दाग़ गिन के काट लीजे आज शब गिने थे कल गगन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में