आतश ओ इंजिमाद है मुझ में कैसा कैसा तज़ाद है मुझ में ख़्वाब से पहले कुछ नहीं यकसर जो भी है उस के बाद है मुझ में ज़ख़्म खुलते हैं साँस घुटती है ऐसी बस्त-ओ-कुशाद है मुझ में रंज-ए-दिल है हरा भरा अब तक कोई तो है जो शाद है मुझ में दुश्मनी का ही रह गया सरोकार वर्ना किस का मफ़ाद है मुझ में कोई इस का सबब नहीं तू ही ये जो इतना फ़साद है मुझ में कोई जल्सा है ज़ोर का जैसे जिस का ये इंइक़ाद है मुझ में जिसे अब तक तलाश करता हूँ गुम-शुदा एक याद है मुझ में आँधियाँ सी जो चल रही हैं 'ज़फ़र' सूरत-ए-ख़ाक-ओ-बाद है मुझ में