कहीं तो हो तरफ़-दारी हमारी कभी तो पीठ हो भारी हमारी तुम्हारी गुफ़्तुगू से लग रहा है है ख़ुशबू जानी-पहचानी हमारी इसी उम्मीद पर ज़िंदा हैं आँखें कभी तो आएगी बारी हमारी अभी है खेल में मिलना बिछड़ना कहाँ तक जाएगी पारी हमारी ज़मीं की छाँव सब तुम को मुबारक चलो जो धूप है सारी हमारी