हमें मौसमों का शुऊ'र है हमें ना-समझ न ख़याल कर तू नवेद-ए-फ़स्ल-ए-बहार दे न लहू फ़ज़ा में उछाल कर कभी अपने ताइर-ए-शौक़ को न असीर-ए-दाम-ए-ख़याल कर कभी गुफ़्तुगू-ए-फ़िराक़ कर कभी जुस्तुजू-ए-विसाल कर न ख़िरद को सर्फ़-ए-नशात कर न जुनूँ को वक़्फ़-ए-मलाल कर कोई सेहर-कार-ए-हुनर दिखा कोई सई-ए-कस्ब-ए-कमाल कर न हिकायत-ए-शब-ओ-रोज़ कह न शिकायत-ए-मह-ओ-साल कर न किसी को वाक़िफ़-ए-दर्द कर न किसी को शामिल-ए-हाल कर सर-ए-बज़्म हो जो सुख़न-सरा कहे हर्फ़ हर्फ़ सँभाल कर न किसी को तल्ख़ जवाब दे न किसी से तुंद सवाल कर मैं उन्हें क़ुबूल नहीं मगर मिरे हम-सफ़ीर ये सोच लें कि फिर उन के पास रहेगा क्या मुझे गुल्सिताँ से निकाल कर वो तिरी ग़िना का मुतालबा कि फ़राख़ दस्त-ए-अता रहे ये तिरी अना का मोआ'मला न दराज़ दस्त-ए-सवाल कर मिरा दिल नहीं मिरा मसअला कि है अब ये आप का आइना इसे एहतियात से देखना इसे तोड़ना तो सँभाल कर मैं अमीर-ए-मुल्क-ए-तरब नहीं मुझे जाम-ए-जम की तलब नहीं मिरी अस्ल है इसी ख़ाक से मुझे पेश जाम-ए-सिफ़ाल कर