जब से तू का'बा-ए-दिल में है सनम की सूरत दैर मुझ को नज़र आता है हरम की सूरत इस क़दर चूर है आईना-ए-एहसास मिरा अब न वो रंग-ए-मुसर्रत है न ग़म की सूरत ये हक़ीक़त है मोहब्बत भी असर करती है कभी तिरयाक की सूरत कभी सम की सूरत रामिश-ओ-रंग से है शहर-ए-निगाराँ मा'मूर दिल है वीरान मगर शहर-ए-अदम की सूरत इस क़दर वक़्त के सूरज ने तपाया 'अतहर' रो दिए देख के हम अब्र-ए-करम की सूरत