और भी इक फ़रेब खाने दे मुस्कुराता हूँ मुस्कुराने दे आश्ना ज़िंदगी से कर मुझ को अपनी आँखों में डूब जाने दे तीरगी इस से मिट सके शायद शम-ए-महफ़िल को जगमगाने दे आज अपना है आज की कर फ़िक्र कल पराया था कल को जाने दे दिल कहीं बुझ न जाए ऐ 'प्रेमी' दर्द की लौ ज़रा बढ़ाने दे