और कोई चारा न था और कोई सूरत न थी उस के रहे हो के हम जिस से मोहब्बत न थी इतने बड़े शहर में कोई हमारा न था अपने सिवा आश्ना एक भी सूरत न थी इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ जैसे किसी को भी अब उस की ज़रूरत न थी अब तो किसी बात पर कुछ नहीं होता हमें आज से पहले कभी ऐसी तो हालत न थी सब से छुपाते रहे दिल में दबाते रहे तुम से कहें किस लिए ग़म था वो दौलत न थी अपना तो जो कुछ भी था घर में पड़ा था सभी थोड़ा बहुत छोड़ना चोर की आदत न थी ऐसी कहानी का मैं आख़िरी किरदार था जिस में कोई रस न था कोई भी औरत न थी शेर तो कहते थे हम सच है ये 'अल्वी' मगर तुम को सुनाते कभी इतनी भी फ़ुर्सत न थी