और न खटका कर बाबा अपने आप से डर बाबा छोड़ चला जब घर बाबा देख न अब मुड़ कर बाबा सब कुछ तेरे अंदर है कुछ भी नहीं बाहर बाबा घूम न यूँ कश्कोल लिए सब्र से झोली भर बाबा ये जीना क्या जीना है जीना है तो मर बाबा ठान लिया सो ठान लिया अब क्या अगर मगर बाबा बात 'रिशी' की मान भी ले शाम हुई चल घर बाबा