कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती क़ीमत में दीद-ए-रुख़ की हम नक़्द-ए-जाँ लगाते बाज़ार-ए-नाज़ लगता दिल की ख़रीद होती कुछ अपनी बात कहते कुछ मेरा हाल सुनते नाज़-ओ-नयाज़ की यूँ गुफ़्त-ओ-शुनीद होती जल्वे दिखाते जाते वो तर्ज़-ए-दिलबरी के और दिल में याँ हवा-ए-नाज़-ए-मज़ीद होती तेग़-ए-नज़र से दिल पर वो वार करते जाते और लब पे याँ सदा-ए-हल-मिम-मज़ीद होती अबरू से उन के ग़म्ज़ा तीर-ए-अदा लगाता ये दिल क़तील होता ये जाँ शहीद होती कुछ हौसला बढ़ाता अंदाज़-ए-लुत्फ़-ए-जानाँ कुछ दग़दग़ा सा होता कुछ कुछ उमीद होती