औरों की बात याँ बहुत कम है ज़िक्र-ए-ख़ैर आप का ही हर दम है जान तक तो नहीं है तुझ से दरेग़ ऐ मैं क़ुर्बान क्यूँ तू बरहम है गाह रोना है काह हँसना है आशिक़ी का भी ज़ोर आलम है ख़ुश न पाया किसी को याँ हम ने देखी दुनिया सरा-ए-मातम है आह जिस दिन से आँख तुझ से लगी दिल पे हर रोज़ इक नया ग़म है मगर आँसू किसू के पोंछे हैं आस्तीं आज क्यूँ तिरी नम है उस के आरिज़ पे है अरक़ की बूँद या कि 'बेदार' गुल पे शबनम है