औसाफ़ आब के हैं तो तासीर आग की हर ज़ाविए से खींच ली तस्वीर आग की किस रौशनी के हाथ है तस्कीन का ख़िराज जलती है हर चराग़ में तक़दीर आग की सहरा के हर्फ़-हर्फ़ में पानी का इंतिज़ार फूलों के लफ़्ज़-लफ़्ज़ में तशहीर आग की जा पूछ इंजिमाद के नुक़्ते से ख़स्लतें उजलत शि'आर बर्फ़ का ताख़ीर आग की उतरे हैं सात रंग इसी फ़िक्र-गाह पर सूझी थी आठवें को भी तदबीर आग की अब तक मिरी ज़बाँ पे हैं छाले पड़े हुए पूछी थी एक शख़्स ने तफ़्सीर आग की