एवज़ दियों के वो रातें उजालने वाले सुना है जल गए सूरज को पालने वाले जो मुझ को झोंक के भागे हैं जंग में तन्हा हैं मेरे बाद ख़िलाफ़त सँभालने वाले ये जिन की चौक में लाशें पड़ी हैं ला-वारिस यही थे प्यार की राहें निकालने वाले ज़बाँ ही जिस की नहीं है वो बोल पाए क्या बुझे चराग़ में ऐ तेल डालने वाले अरे बुला कि उन्हें आइना दिखाएँ हम कहाँ हैं चाँद पे कीचड़ उछालने वाले