दिन ढले का ये तअल्लुक़ ख़्वाब सा रह जाएगा हम चले जाएँगे और तू जागता रह जाएगा फ़ासले आफ़ाक़ को ले कर कहीं खो जाएँगे काएनातों के तसर्रुफ़ में ख़ला रह जाएगा कूँज दरिया चोंच में भर कर हवा हो जाएगी पानियों का दास्ताँ-गो देखता रह जाएगा जागते जंगल में खो जाएँगी परियाँ ख़्वाब की मुंतज़िर नींदों का दरवाज़ा खुला रह जाएगा ज़ाद-ए-रह में रख ले सूरज बाँध कर चाहे 'नवाब' शाम-नगरी की तरफ़ जो भी चला रह जाएगा