अव्वल अव्वल की जवानी में उबाल आया था बाद में जा के कहीं ज़ब्त-ए-कमाल आया था मेरे विज्दान ने बर-वक़्त बताया था मुझे हिज्र का ख़्वाब मुझे वक़्त-ए-विसाल आया था कू-ब-कू फैल गई उस के बदन की ख़ुशबू साफ़ लगता है वही ज़ोहरा-जमाल आया था ख़ुद को पाने के लिए ख़ुद में उतर कर अपने बहर-ओ-बर हाथ की छलनी में खँगाल आया था वक़्त के जब्र की दहलीज़ पे बैठा जिस दम ग़म की तहरीक से ख़ुशियों पे ज़वाल आया था अब तो अहबाब भी दम भर को ठिठुक जाते हैं जब मैं आया था यहाँ कितना निहाल आया था 'आब्दी' कौन बताएगा मिरे बाद उसे डूबते वक़्त मुझे उस का ख़याल आया था