ज़िंदगी बीमार हो कर रह गई साया-ए-दीवार हो कर रह गई कौन गाएगा बजाएगा उसे शाइरी अख़बार हो कर रह गई ज़ख़्म जब भी मुंदमिल होने लगे गुल-मक्खी अंगार हो कर रह गई जिस में तेरी आँख के आँसू बहे वो नदी शहकार हो कर रह गई किस क़दर पहलू हैं 'ख़ुशतर' बात में हर कली गुलज़ार हो कर रह गई