अव्वल ग़ज़ल इबादत की By Ghazal << है नींद अभी आँख में पल भर... ये वहम था मिरा या फिर हवा... >> अव्वल ग़ज़ल इबादत की उस के बा'द शरारत की मुझ को याद रहा तू भूला बात है ये तो आदत की उस से मिल कर और बढ़ी है प्यास बुझी न चाहत की दिन-भर दुख के पत्थर काटे रात मिली न राहत की मुझ को भूलने वाले तू ने मुझ पे बड़ी इनायत की Share on: