अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है मेरे गले में इश्क़ का ज़ुन्नार था सो है ऐ शाह-ए-हुस्न मुझ कूँ तुम्हारी जनाब में मुद्दत सीं बंदगी का जो इक़रार था सो है मालूम यूँ हुआ कि नसीबों में नहीं शिफ़ा शमशीर-ए-ग़म का वार जिगर पार था सो है जिऊँ ग़ुंचा सैर-ए-बाग़ सीं होता हूँ तंग-दिल तुझ बिन मिरी निगाह में गुल ख़ार था सो है सोज़न मिसाल आँख में सिलती है हर पलक तेरी बिरह का ख़ार दिल-आज़ार था सो है अब लग ग़म-ए-फ़िराक़ जुदाई की रात में यारो रफ़ीक़-ओ-मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार था सो है मत बूझ सोज़-ए-इश्क़ सीं फ़ारिग़ सिराज कूँ परवाना-वार जान सीं बलहार था सो है