इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी उसी दरवेश के क़दमों में है सुल्तानी भी हम भी वैसे न रहे दश्त भी वैसा न रहा उम्र के साथ ही ढलने लगी वीरानी भी वो जो बर्बाद हुए थे तिरे हाथों वही लोग दम-ब-ख़ुद देख रहे हैं तिरी हैरानी भी आख़िर इक रोज़ उतरनी है लिबादों की तरह तन-ए-मल्बूस! ये पहनी हुई उर्यानी भी ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ दोस्त इक उम्र में मिलती है ये आसानी भी