अयाँ हम अपने ख़यालात कर के देखते हैं अगर वो चुप हैं तो हम बात कर के देखते हैं कभी तो उन की ख़मोशी का राज़ इफ़्शा हो नज़र से आज सवालात कर के देखते हैं कई दिनों से वो मिलते नहीं हैं हम से मगर क़दम बढ़ा के मुलाक़ात कर के देखते हैं नसीब अपना कभी तो चमक भी सकता है कहीं पे दिन तो कहीं रात कर के देखते हैं यहाँ जो धूप है नफ़रत की हर तरफ़ 'तस्कीन' चलो कि प्यार की बरसात कर के देखते हैं