अयाँ हम पर न होने की ख़ुशी होने लगी है दिये में इक नई सी रौशनी होने लगी है नई कुछ हसरतें दिल में बसेरा कर रही हैं बहुत आबाद अब दिल की गली होने लगी है सो तय पाया मसाइब ज़िंदगी के कम न होंगे मगर कम ज़िंदगी से ज़िंदगी होने लगी है उधर तार-ए-नफ़स से आ मिली है रौनक़-ए-ज़ीस्त इधर कम मोहलती में भी कमी होने लगी है सर-ए-आग़ाज़ दिल की दास्ताँ में वो नहीं था मगर महसूस अब उस की कमी होने लगी है हमारी दोस्ती का दम भरें ऐसे कहाँ हैं ज़माने सब से तेरी दोस्ती होने लगी है