अय्याम सिर्फ़ शाम-ओ-सहर हो के रह गए कैसे अजीब लोग थे घर हो के रह गए हम को पसंद आ गया साहिल का मशवरा कश्ती की लकड़ियाँ थे शजर हो के रह गए मिट्टी के इस मकान ने धोका दिया हमें सहरा-नवर्द ख़ाक-बसर हो के रह गए आँखें झपक के रह गईं दिल की वफ़ात पर सैलाब सिर्फ़ दीदा-ए-तर हो के रह गए पहले तो अपने पाँव ज़मीं से जुदा हुए फिर यूँ हुआ कि शहर-बदर हो के रह गए