अज़ाब अपने मुक़द्दर में और क्या होगा ख़याल-ओ-ख़्वाब में सदियों का फ़ासला होगा वफ़ूर-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से काँपते हैं शजर लचकती शाख़ से पत्ता कोई गिरा होगा सुनाएँ किस को ये रूदाद-ए-काविशे-ए-नाकाम कि ये फ़साना-ए-ग़म तो कहा सुना होगा हमारी बज़्म-ए-बसीरत हमारी शम-ए-ख़याल वो हम नहीं जिन्हें औरों का आसरा होगा लुटा तो दें इसी महफ़िल में नूर की सौग़ात यहाँ पे कौन मगर रम्ज़-आशना होगा है शौक़-ए-रम्ज़-ए-सफ़र और ख़याल-ए-मिशअल-ए-राह कभी तो नूर-ए-अज़ल तेरा सामना होगा