वो जुदा हो के ख़ुद हुआ तन्हा और मुझ को भी कर गया तन्हा मैं भी कुछ इस तरह से तन्हा हूँ जैसे मज़लूम की सदा तन्हा चाँदनी तो भटकती फिरती थी चाँद भी रात भर रहा तन्हा याद तेरी वहाँ चली आई मुझ को देखा जहाँ ज़रा तन्हा आओ उस को बुला के लाते हैं रात कट जाएगी भला तन्हा उस को रुख़्सत तो कर दिया 'ज़ाहिद' फिर न जाने कहाँ गया तन्हा