अज़ल के दिन से चला हूँ अभी सफ़र में हूँ मैं आसमाँ पे सही फिर भी रह-गुज़र में हूँ सुख़न में सोज़ न जाने कहाँ से फूट पड़ा ग़रीक़ जब से मय-ए-हर्फ़-ए-ला-तज़र में हूँ तिरी नमाज़ है मुहताज-ए-मिम्बर-ओ-मेहराब मिरी नमाज़ कि बस रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर में हूँ सुकून-ए-दिल की तलब में तड़प रहा हूँ मगर असीर लज़्ज़त-ए-दुनिया-ए-सीम-ओ-ज़र में हूँ मिरा क़ुसूर था क़ालू-बला-शहिदना भी क़ुसूर-वार ख़ता-ए-अबुल-बशर में हूँ