अश्क पीने पे रहे दर्द छुपाने पे रहे एक सच बोल के किस किस के निशाने पे रहे उम्र-भर हुस्न तिरे नाज़ उठाने पे रहे आब आँखों में लिए आग बुझाने पे रहे तुम परिंदे थे गए आए गए फिर आए पेड़ थे हम तो सदा एक ठिकाने पे रहे हम से छोड़ी न गई अर्ज़-ए-वतन की मिट्टी अपने अज्दाद की क़ब्रों के बहाने पे रहे मुफ़लिसी भूक ये बच्चा ये खिलौने की दुकान बोझ इतना न किसी बाप के शाने पे रहे ऐसे मौसम में तुम्हें याद बहुत आऊँगा जब हवा सुर्ख़ गुलाबों को जलाने पे रहे जब भी शब-ख़ून क़बीले पे अदू ने मारा जितने सरदार थे सब जान बचाने पे रहे मुझ से हर साँस पे माँगा गया शिद्दत से ख़िराज मेरे एहसान इधर सारे ज़माने पे रहे ताज ग़ैरों ने मिरे सर पे सजाए 'बज़्मी' मेरे अपने मिरी दस्तार गिराने पे रहे