वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था अभी गुज़र जो गया इक अज़ीम लम्हा था सुना है मैं ने यहाँ सुर्ख़ घास आ गई थी वो बादशाह यहीं अपनी जंग हारा था हमारी रात से बेहतर थी अगले वक़्त की रात हर एक घर में दिया सुब्ह तक तो जलता था अज़ीज़ मुझ को भी थे नक़्श अपने माज़ी के उसे भी शौक़ पुरानी इमारतों का था अब अपने सर का तहफ़्फ़ुज़ भी आप ख़ुद कीजे फ़ज़ा में आप ने पत्थर भी ख़ुद उछाला था गया तो अपनी उदासी भी दे गया मुझ को तमाम दिन जो मिरे साथ हँसता रहता था अब उस से एक बड़ा नाम जुड़ गया 'अज़हर' जो शाह-कार मिरी फ़िक्र ने बनाया था