बादा ही कहे है न वो पैमाना कहे है जो बात तिरी नर्गिस-ए-मस्ताना कहे है हस्ती का भरम प्यार का नज़राना कहे है क्या क्या न ग़म-ए-इश्क़ को दीवाना कहे है ये शहर-ए-तमन्ना है हर इक चेहरा यहाँ का संग-ए-सितम-ओ-जौर का अफ़्साना कहे है गुज़रा है कोई क़ाफ़िला-ए-बाद-ए-बहारी महकी हुई ख़ाक-ए-रह-ए-वीराना कहे है क्या बात है दीवाने के अंदाज़-ए-नज़र की हर चीज़ को अक्स-ए-रुख़-ए-जानाना कहे है कहते हैं कि 'नाज़िम' रविश-ए-आम से हट कर इस हुस्न-ए-जहाँ-ताब का अफ़्साना कहे है