बात अपने दिल की वो मुझ को बताता क्यों नहीं प्यार गर करता है मुझ से तो जताता क्यों नहीं एक मुद्दत हो गई पहचान को उस से मिरी ख़्वाब में अब भी भला मिलने वो आता क्यों नहीं मैं उसे अपने जिगर में धड़कनों सा रखता हूँ साँस में सरगम सा मुझ को वो बसाता क्यों नहीं चाँद ने पूछा था मुझ से ये बताना तो ज़रा पहले सा तू यार मेरे मुस्कुराता क्यों नहीं सब की बातें सुनने की फ़ुर्सत तो रहती है उसे फिर मिरी बातों पे उस का ध्यान जाता क्यों नहीं शाम भी है जाम भी है हैं मिरे सब यार भी चाय सा दिल से मिरे वो यार जाता क्यों नहीं