दिल बना है हदफ़-ए-तीर-ए-नज़र आप ही आप ज़ख़्म खाए हैं शब-ओ-रोज़ मगर आप ही आप ख़ौफ़-ए-रहज़न भी नहीं हाजत-ए-रहबर भी नहीं रहगुज़र है ख़िज़र-ए-राहगुज़र आप ही आप कुछ उधर से भी तक़ाज़ा-ए-वफ़ा होने दे दिल-ए-नादाँ तू ही आग़ाज़ न कर आप ही आप हम ने माना कि नज़र हम न करेंगे हरगिज़ और खींचे कोई दामन को अगर आप ही आप लाख पर्दों में कोई ख़ुद को छुपाए भी तो क्या जज़्ब कर लेगी नज़ारों को नज़र आप ही आप फ़िक्र-ए-सामान-ए-तकल्लुफ़ हो 'असर' क्यूँ बे-कार ज़ीस्त हो जाएगी ऐसे ही बसर आप ही आप