बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से कितना अर्ज़ां हुआ मैं अपनी फ़रावानी से ख़ाक ही ख़ाक नज़र आई मुझे चारों तरफ़ जल गए चाँद सितारे मिरी ताबानी से बे-तहाशा जिए हम लोग हमें होश नहीं वक़्त आराम से गुज़रा कि परेशानी से अब मिरे गिर्द ठहरती नहीं दीवार कोई बंदिशें हार गईं बे-सर-ओ-सामानी से आएगा ऐसा भी इक मोड़ सफ़र में 'राही' गर्द भी मेरी न पाओगे तुम आसानी से