दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत काम थोड़ा था गुफ़्तुगू थी बहुत संग-ए-मंज़िल ये छेड़ता है मुझे आ तुझे मेरी जुस्तुजू थी बहुत ऐ हवस! देख दाग़ दाग़ जिगर तू भी मुश्ताक़-ए-रंग-ओ-बू थी बहुत कौन है जिस से मैं नहीं उलझा गो मिरी तब्अ सुल्ह-जू थी बहुत बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई रूह जूया-ए-हम-सुबू थी बहुत इक तिरी ही निगाह में न जचे शहर में वर्ना आबरू थी बहुत