बात छोटी हो या हो बड़ी दोस्तो तुम न करना कभी हड़बड़ी दोस्तो रहगुज़र के बग़ल में शजर ठीक है धूप कल और होगी कड़ी दोस्तो कोई परछाई तन्हा मुझे देख कर साथ मेरे यूँही चल पड़ी दोस्तो भूमी देखी जो थोड़ी सी भी दलदली आँख उन की वहीं पर गड़ी दोस्तो बन गई वो ही मेरी शरीक-ए-हयात ये नज़र जिस से पहले लड़ी दोस्तो