बात है आप की ग़ज़ब की बात काश फ़रमाते कोई ढब की बात मुख़्तलिफ़ है ज़बान दुश्मन-ओ-दोस्त एक होती नहीं है सब की बात झनझना उट्ठे साज़-ए-दिल सब के अल-अमाँ तेरे ज़ेर-ए-लब की बात आशियाना कहाँ कहाँ ये क़फ़स अब किसे याद होगी जब की बात दिल ने आख़िर निगाह को टोका बे-अदब कह गया अदब की बात दर्द-ए-दिल पूछ दर्द वालों से जाँ-ब-लब जाने जाँ-ब-लब की बात मौसम-ए-गुल पे तब्सिरा है अबस ग़ुंचा-ओ-गुल से तुम ने कब की बात सब के लब पर हैं तज़्किरे कल के कोई कहता नहीं है अब की बात शम्अ रौशन हुई है आख़िर-ए-शब सुब्ह को याद आई शब की बात दिल को भाई बस उन की बात 'अशरफ़' यूँ तो सुनने को सुन ली सब की बात