बात जो की थी दिल-लगी के लिए बन गई बार ज़िंदगी के लिए तेरे जाने के बाद बरसों तक लब तरसते रहे हँसी के लिए तेरी आमद का गर यक़ीं होता और जी लेते इक घड़ी के लिए ख़ून-ए-दिल पी के मुस्कुराते रहो ये भी लाज़िम है ज़िंदगी के लिए ज़ीस्त से कब के आ चुके आजिज़ जी रहे हैं मगर किसी के लिए तन के मारे से कुछ नहीं होगा मन को मारो क़लंदरी के लिए दर्द ग़म रंज आह नाला फ़ुग़ाँ ऐ 'नरेश' एक आप ही के लिए