बात कुछ हम से बन न आई आज बोल कर हम ने मुँह की खाई आज चुप पर अपनी भरम थे क्या क्या कुछ बात बिगड़ी बनी बनाई आज शिकवा करने की ख़ू न थी अपनी पर तबीअत ही कुछ भर आई आज बज़्म साक़ी ने दी उलट सारी ख़ूब भर भर के ख़ुम लुंढाई आज मासियत पर है देर से या रब नफ़्स और शरा में लड़ाई आज ग़ालिब आता है नफ़्स-ए-दूँ या शरअ' देखनी है तिरी ख़ुदाई आज चोर है दिल में कुछ न कुछ यारो नींद फिर रात भर न आई आज ज़द से उल्फ़त की बच के चलना था मुफ़्त 'हाली' ने चोट खाई आज